आज फिर क्यूँ दिल बैठा जा रहा है,
क्यूँ अनायास ये खुद में सहमा जा रहा है,
थी तो धुन धडकनों में, फिर क्यूँ खामोश होता जा रहा है..!
आज फिर क्यूँ मायूसी घेर चुकी है,
क्यूँ अचानक मुझको ओढ़ चुकी है,
थी तो चादर खुशियों की, फिर क्यूँ आंसुओं से भीगा जा रहा है ..!
आज फिर आँखों में वही तन्हाई है,
क्यूँ अकस्मात् इनमे छुप चुकी कोई रुसवाई है,
थी तो रात उजियारी, फिर क्यूँ आज सवेरे अँधेरा होता जा रहा है..!