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"कर्मयोगी"

Friday, December 30, 2011

अक्सर



खुद की राहों में खो जाता हूँ,
खुद की छाँव में सो जाता हूँ,
होकर सबके बीच भी,
अक्सर कही गुम मै हो जाता हूँ...!!

11 comments:

संजय भास्‍कर said...

truly brilliant..
keep writing..all the best

संगम Karmyogi said...

Thanks for the apppreciation :)

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत एवं लाजवाब रचना! बधाई!

संगम Karmyogi said...

@urmiji: aapka shukriya :)

विभूति" said...

वाह! चंद पंक्तिया बहुत गहराई है इनमे ............

संगम Karmyogi said...

@sushmaji: dhanyawad,blog pe aane aur is tippani k liye... :)

दिगम्बर नासवा said...

Ekaki man ko abhivyakt karti ... Lajawab panktiyan ...

संगम Karmyogi said...

dhanywad Digambar Naswaji...

Urmi said...

वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!

Dr.NISHA MAHARANA said...

बहुत अच्छा।

Satish Saxena said...

निज राहों में खो जाता हूँ
निज छाया में सो जाता हूँ
अक्सर सबके बीच में होकर
न जाने क्यूँ गुम हो जाता हूँ !