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"कर्मयोगी"

Tuesday, December 9, 2008

कुछ इस तरह से..!
















ये मेरी रचना नहीं है,

ये पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगती हैं...

शायद ये मुझसे जुडी हैं या फिर युहीं अच्छी लगती हैं...पता नही!


कुछ इस तरह से मैंने जीवन सजा लिया,
कुछ इस तरह से मैंने जीवन सजा लिया, हर बार एक नया चेहरा लगा लिया..!

तकदीर की लकीरें हाथों में रुक गयीं,

क़दमों की आहटों से मंजिल ठहर गयी,

अपनों की आरजू को हर पल मिटा दिया,
कुछ इस तरह से मैंने जीवन सजा लिया..!

गुमनाम जिंदगी,

अनजान रास्ते,

चलते हैं साथ साथ,

सदियों के फांसले..!


जीने की आरजू ने जीना सिखा दिया,
जीने की आरजू ने जीना सिखा दिया,

कुछ इस तरह से मैंने जीवन सजा लिया,
हर बार एक नया चेहरा लगा लिया...!

3 comments:

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

jeene ki arju ne jeena sikha diya..
Har baar ek naya chehra laga liya..
bhai wah ,qya baat hai ,bahut khub ,lekhni chalti rahe.bahut bahut subhkamna ===========

Unknown said...

excellent, mind blowing.........!!!!!!!
keep it up........!!!!!!

hemant singh said...

it's awesome man..really u have got realistic mantality yaar..
keep it on the fast track..to give lot more.
my blessing's r always with u..gud luck.