ना मैं संधि हूँ,
ना मैं विच्छेद हूँ,
ना मैं विधि हूँ,
ना ही मैं निषेध हूँ,मैं क्या जानूं,मैं हूँ कौन..!
ना मैं वेद हूँ,
ना मैं कुरान हूँ,
ना मैं स्थिर हूँ,
ना ही मैं गतिमान हूँ,मैं क्या जानूं,मैं हूँ कौन..!
ना मैं शु्ध हूँ,
ना मैं अशुद्ध हूँ,
ना मैं अमृत हूँ,
ना ही मैं विष हूँ,मैं क्या जानूं,मैं हूँ कौन..!
ना मैं जप हूँ,
ना मैं तप हूँ,
ना मैं आदि हूँ,
ना ही मैं अंत हूँ,मैं क्या जानूं,मैं हूँ कौन..!
ना मैं आस हूँ,
ना मैं विश्वास हूँ,
ना मैं संन्यास हूँ,
ना ही मैं तलाश हूँ,मैं क्या जानूं, मैं हूँ कौन..!
मैं क्या जानूं, मैं हूँ कौन..!
मैं क्या जानूं, मैं हूँ कौन..!
आधी है मुस्कान...
आधी है ख़ुशी,
दिल में है उम्मीदें..
पूरी करनी हैं फरमाइशें!
अधूरे हैं सपने...
अधूरे हैं ख्वाब,
दिल में है उम्मीदें..
पूरी करनी हैं ख्वाहिशें!
अतुल है ये क्रोध..
अतुल है ये द्वेष,
दिल में है उम्मीदें..
पूरी करनी हैं रंजिशें!
अदभुत है ये जीवन...
अदभुत है ये सफ़र,
दिल में है उम्मीदें..
पूरी करनी हैं गुजारिशें!
असंभव है ये चाहत,
असंभव है ये प्रीत,
पर दिल में है उम्मीदें..
और पूरी करनी हैं मोहब्बतें!!
लौ थी बुझी सी,
नीरस था जीवन,
खुशियों से था ना कोई नाता..
अकेलेपन से थी दोस्ती,
भूले थे अपनी ही हस्ती,
सिर्फ याद थी निराशा..!
पर था नही हारा,
कायम था तेज,
नाही लगाईं उम्मीद किसी से,
ना की तलाश किसी की,
केवल की प्रतीक्षा..
हुई दस्तक,
गूंज गया सन्नाटा,
चमकी आँखें,
रौशन हुआ अँधेरा..
अब रहने लगी हंसी चेहरे पे,
जैसा मिला नया जीवन,
हुआ तेज और तेज..
नहीं रखी है कोई शर्त,
पर पुरे करने है कई सपने,
नहीं जगह अब अकेलेपन की,
अब तो पराये भी लगते हैं अपने..
लौ है जल उठी,
प्रफ्फुलित है जीवन,
खुशियों से है अब नाता..!!